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इ꣡न्द्रा या꣢꣯हि धि꣣ये꣢षि꣣तो꣡ विप्र꣢꣯जूतः सु꣣ता꣡व꣢तः । उ꣢प꣣ ब्र꣡ह्मा꣢णि वा꣣घ꣡तः꣢ ॥११४७॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

इन्द्रा याहि धियेषितो विप्रजूतः सुतावतः । उप ब्रह्माणि वाघतः ॥११४७॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ꣡न्द्र꣢꣯ । आ । या꣣हि । धिया꣢ । इ꣣षितः꣢ । वि꣡प्र꣢꣯जूतः । वि꣡प्र꣢꣯ । जू꣣तः । सु꣡ता꣢वतः । उ꣡प꣢꣯ । ब्र꣡ह्मा꣢꣯णि । वा꣣घ꣡तः꣢ ॥११४७॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1147 | (कौथोम) 4 » 2 » 5 » 2 | (रानायाणीय) 8 » 3 » 3 » 2


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में फिर वही विषय है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् ! (धिया इषितः) ध्यान द्वारा प्रेरित, (विप्रजूतः) मेधावी जीवात्मा से स्तुति किये गये आप (सुतावतः) पुत्रवान्, (वाघतः) अध्यात्मयज्ञ के वाहक मेरे (ब्रह्माणि) स्तोत्रों के (उप आ गहि) समीप आओ ॥२॥

भावार्थभाषाः -

परिवार में पत्नी, पुत्र, पौत्र आदि सहित सबको प्रातः-सायम् ध्यानपूर्वक परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए ॥२॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ पुनस्तमेव विषयमाह।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् ! (धिया इषितः) ध्यानेन प्रेरितः, (विप्रजूतः) मेधाविना जीवात्मना स्तुतः त्वम् (सुतावतः) पुत्रवतः (वाघतः) अध्यात्मयज्ञवाहकस्य मम (ब्रह्माणि) स्तोत्राणि (उप आ याहि) उपागच्छ ॥२॥२

भावार्थभाषाः -

परिवारे पत्नीपुत्रपौत्रादिसहितैः सर्वैः प्रातःसायं ध्यानेन परमेश्वर आराधनीयः ॥२॥

टिप्पणी: १. ऋ० १।३।५, य० २०।८८, अथ० २०।८४।२। २. दयानन्दर्षिणा मन्त्रोऽयम् ऋग्भाष्ये परमेश्वरविषये यजुर्भाष्ये च विद्वद्विषये व्याख्यातः।